लेखनी प्रतियोगिता -07-Oct-2022 दशहरे का रावण

दशहरे का रावण

प्रतिवर्ष जले रावण का पुतला 
क्या जलाने वाला खुद राम है।
खुद के अन्दर झांककर देखा
निज मन में रावण है या राम है।

आज बसा है हर मानव अंदर,
तामसी,अहंकारी,पापी रावण।
सद्वृत्तियों का होता चीर हरण,
अबला कन्या देवों के अपहरण। 

मन का चोर बसा हर दिल में
दंभ पाप और पाखंड है भरा।
क्या केवल है रावण इकलौता
जिसमें ताकत का घमंड भरा‌।

मत फूंको रावण का पुतला,
फूंक सको तो बुराई को फूंको।
वेद-शास्त्र पुराणों का ज्ञाता,
हारा निज एक बुराई से,सीखो।

दूध से धुला गर हो कोई  मानव,
तो फूंक सके रावण का पुतला।
राम के सम जन्मा हो धरा पर
मर्यादा पुरुषोत्तम बन हो उभरा।

प्रतीक बुराई रावण का पुतला,
मनुज जलाना निज हृदय से।
अच्छाई को जीत के 'अलका',
विजयादशमी पर रहे खुशी से।

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' 
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।



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8 Comments

Suryansh

10-Oct-2022 05:41 PM

बहुत ही उम्दा और सशक्त लेखन

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Pratikhya Priyadarshini

09-Oct-2022 01:07 AM

Bahut khoob 🙏🌺

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बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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